सरसों का रकबा बढ़ने से किसान होंगे खुशहाल
इस बार मौसम का मिजाज ठीक ठाक रहा और सरसों की फसल बची रही तो खाद्य तेलों के मामले में हम आत्म निर्भरता के करीब पहुंच सकते हेंं। इस बार सरसों की बिजाई किसानों ने भरपूर की है। सरसों की अच्छी कीमतों के चलते किसानों का यह रुझान कई माईनों में हमारे लिए राहत भरा है। बीते दो दशकों से सरकारें खाद्य तेलों के मामले में देश को आत्म निर्भर बनाने की दिशा में प्रयास कर रही हैं।आईसोपाम योजना में लाखों लाख रुपया किसानों को जागरूक करने व ट्रेनिंग प्रोग्राम के नाम पर खर्च होता रहा। मोटी धनराशि बीज किटों पर भी खर्च की जाती रही लेकिन बाजार की चाल और मौसम के मिजाज ने इसे एक बार में ही आसान बना दिया। इस बार सरसों की कीमतें बाजार में आठ हजार रुपए कुंतल के पार पहुंच गईं। इसका परिणाम यह रहा कि धान आदि के खेत खाली होते ही किसानों ने सरसों लगा दी।
कहां कितना बढ़ा सरसों बिजाई क्षेत्र
सरसों का राजस्थान में 30 से प्रतिशत से अधिक क्षेत्रफल बढ़ा है। गुजरात राज्य में भी सरसों की बिजाई बेतहासा बढ़ी है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी सरसों उत्पादक क्षेत्रों में भी बिजाई का क्षेत्रफल काफी बढ़ा है।
बीज कंपनियों ने जमकर काटी चांदी
सरसों की अच्छी बुबाई का अंदाजा लगा चुकी कंपनियों ने जमकर चांदी काटी। बाजार में बीज 800 रुपए प्रति किलोग्राम के पार तक बिक गया। बिजाई सीजन में हुई पछेती बरसात के चलते किसानों को दोबारा फसल बोनी पड़ी। इसके चलते डीएपी खाद के साथ साथ बीज के लिए भी मारामारी रही।
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खरपतवार नियंत्रकों घटेगी सेल
सरसों की फसल में खरपतवार कम निकलते हैं। इसके अलावा जिस खेत में सरसों लग जाती है उसमें दूसरी फसल में भी खरपतवार नहीं निकलते। मसलन उनका बीज नहीं बन पाता और खरपतवार सरसों के नीचे ही दम तोड़ देते हैं। कई सालों के लिए किसान की जमीन खरपतवार की समस्या से मुक्त हो जाती है। इसका असर खरपतवार नियंत्रक कंपनियों की सेल पर पड़ेगा। मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से यह शुभ संकेत भी है।
विदेशी मुद्रा भंडार होगा सुरक्षित
देशी खाद्य तेलों की जरूरत को पूरा करने के लिए हमें विदेशों से तेल और सोयाबीन आदि मंगानी पड़ती है। सरसों का क्षेत्र इसी तरह बढ़ा तो वह दिन दूर नहीं कि हमेें आधे से ज्यादा खाद्य तेल के आयात की बजाय थोड़ा बहुत तेल मंगाना पड़े। इससे विदेशी मुद्रा भंडार सुरक्षित होगा।